रामकृष्ण परमहंस ने उन्हें जगन्माता देवी के स्थान पर बिठाकर पूजा सम्पूर्ण थी । जिससे उन्हें उच्च अध्यात्मिक चेतना प्राप्त हुई ।शारदा देवी को सिखाया कि किस प्रकार सांसारिक कर्तव्यों के निर्वहन करते हुए एक आध्यात्मिक जीवन निहित किया जा सकता है। मां शारदा ने शुद्ध जीवन का नेतृत्व किया।उनकी अध्यात्मिक चेतना की उच्च कोटि कोटि की थी। रामकृष्ण की मृत्यु के बाद उन्होंने मातृत्व भाव से अनेक शिष्यों को अध्यात्मिक दीक्षा दी।
1893 में स्वामी विवेकानन्द ने अमेरिका में धार्मिक सम्मेलन से पूर्व मां शारदा से मार्गदर्शन व आशीर्वाद लिया। स्वामी विवेकानंद की पश्चिमी शिष्याओं का एक दल कलकत्ता के लिए आया हुआ था मां ने उन दिनों के रूढ़िवादी समाज के प्रतिबन्ध की अनदेखी कर अपनी बेटियों के रूप में खुले हाथों से उन्हें स्वीकार किया।
माँ शारदा देवी से पूरे दिल से भारत का कायाकल्प और आम जनता और महिलाओं के उत्थान के लिए स्वामी विवेकानन्द की योजनाओं में उनका समर्थन किया। वे हदय से भगिनी निवेदिता द्वारा प्रारम्भ किए गये लड़कियों के विद्यालय के साथ जुडी थी ।
मां शारदा दिव्य विभूतियों से सम्पन्न थी। वे वहां रहने वाले और आने वालों के लिए भोजन बनाती थी। वे सदा सेवा ,ध्यान, पूजा और जप में संलग्न रहती थी। शारदा देवी जाति बंधन से ऊपर उठकर भेदभाव को मिटाने का सन्देश देती थी सभी जाति ,धर्म के बच्चों को प्रेम करती थी।