धर्म, देशभक्ति एवम् संगठन कौशल्य की त्रिवेणी: रानी मां गाईदिन्ल्यू

Rashtra Sevika Samiti    17-Jul-2023
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Gaidinlyu धर्म, देशभक्ति एवम् संगठन कौशल्य की त्रिवेणी: रानी मां गाईदिन्ल्यू
 
रानी मां गाईदिन्ल्यू  भारत की नागा अध्यात्मिक एवम् राजनेत्री थी जिसने रणांगण मे ब्रिटिश सेना से सामना करने के लिए युद्ध स्थल पर सेना का नेतृत्व किया ,वहीं चिंतन मनन कर नागा समाज को जोड़ने के लिए चार यात्रा की व नए समाजधर्म की नींव रखी। इनके स्वधर्म, संस्कृति रक्षण के कार्य से वहाँ की जनता उन्हें देवी स्वरूप मानती थी। उनका चरित्र हमें नर  से नारायण बनने की प्रेरणा देता है।

       26 जनवरी,1915 को पश्चिम मणिपुर के रोगमेंई नागा जनजाति के परिवार में जन्म हुआ था। इनके पिता श्री लोयोनांग अपने कबीले के प्रमुख थे। बचपन से ही दैवीय गुणों से सम्पन्न ,वीर और साहसी होने के कारण गाईदिन्ल्यू , देवी का अवतार मानी जाती थी, उसके एक इशारे पर नागा वीर मरने मारने को तैयार 'होते थे। "हम हिन्दू है"नागा समाज में यह भाव पैदा करने का श्रेय रानी मां गाई दिन्ल्यू को जाता है। नागभूमि (नागालैण्ड) को भारत के साथ जोड़े रखने में उनका महत्वपूर्ण योगदान है।

     अपने गुणों के कारण बचपन से ही नागा समाज की अनेक जाति उपजाति को जोड़ने का कार्य किया । नागाओं में फैले अंधविश्वासों को दूर कर ,अपने रीति-रिवाजों और परम्पराओं को हिन्दू धर्म और संस्कारों के साथ जोड़ने का महती कार्य रानी गाईदिनल्यू ने किया। 

      वह 13 वर्ष की आयु में नाग नेता जादोनांग के सम्पर्क में आई थी। जादोनांग ने अंग्रेजों के अत्याचारों से नागालैण्ड को स्वतन्त्र कराने की कसम खाई और उन्हें भारत से बाहर निकालने में सक्रिय थे। इस समय क्रिश्चियन मिशनरी द्वारा धर्म परिवर्तन  कराये जाए जाने के विरोध में हरक्का ( अर्थात शुद्ध- पवित्र) नाम से एक पंथ स्थापित किया। जिसके द्वारा अंग्रेजों के विरुद्ध प्रचार अभियान व युवकों को संगठित करना प्रारम्भ किया। उन्हें हथियार चलाते व गुरिल्ला युद्ध में पारंगत किया। सम्पूर्ण नागा क्षेत्र के वनवासियों में अपने पूर्वर्जी की परम्परिक उपासना पद्धति 'हरक्का' को अपनाकर वैसी श्रद्धा बढ़ने लगी। 

      जादोनांग का ब्रिटिश सत्ता के साथ संघर्ष चल रहा था कि अचानक उसे गिरफ्तार कर लिया गया व 29 अगस्त 1931 को फांसी पर लटका दिया गया। इस आन्दोलन का नेतृत्व गाइदिनल्यू ने अपने हाथ में ले लिया। वह हर हाल में अपनी  संस्कृति, भाषा और अपनी मिट्टी की रक्षा करना चाहती थी।  अंग्रेज उनके तीन कबीले जेमी, न्यांगमेयी और रांगमेयी (सामूहिक में लेलियारांग) में जबरन धर्म परिवर्तन कर रहे थे ।वह इनमें एकता स्थापित करना चाहती थी। गुरिल्ला युद्ध में पारंगत गाइदिनल्यू ने 12 मार्च 1930 को गांधी जी द्वारा चलाये जा रहे "सविनय अवज्ञा आन्दोलन' में सरकार को किसी भी प्रकार न कर देने की घोषणा की। सभी नागा कबीलों ने अंग्रेजों से सशस्त्र संघर्ष किया। एक बार तो नागा पहाड़िया में अंग्रेजी सत्ता चरमरा गई। काफी समय भूमिगत रहते हुए अंग्रेजों को मात देने से अंग्रेज चिढ़ गए। वे किसी भी कीमत पर गाईदिन्ल्यू को पकड़ना चाहते थे। गाइदिनल्यू ने 4000 सैनिकों के लिए एक काष्ठ का किला निर्माण करवाना प्रारम्भ किया हुआ था। अचानक एक दिन असम राइफल्स के कैप्टन मैकडॉनल्ड  को उन्हें पकड़ने भेजा। एक गुप्त जानकारी के आधार पर उन्हें पकड़ कर हत्या व हत्या की साजिश का आरोप लगाकर उम्र कैद दे दी। भारत की आजादी तक वह जेल में रही। 

        रानी लक्ष्माबाई की तरह वीरतापूर्वक  कार्य करने  के लिए इन्हें नागालैण्ड की रानी लक्ष्मी बाई कहा जाता हैं। सेवा के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य के लिए 1982 से पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।