अमृतादेवी
1730 में राजस्थान के जोधपुर नरेश अभय सिंह को अपने महल के निर्माण के लिए चूना और उसे पकाने के लिए ईंधन की आवश्यकता थी उन्होंने अपने मंत्री भंडारी गिरधरदास को पेड़ों को काटने को कहा। राजा के सैनिक खेजडली गांव पहुंचे और निर्ममता से खेजडी के वृक्ष काटने लगे। जैसे ही यह समाचार गांव में फैला तो लोग इकट्ठा होने लगे। उन्होंने सैनिकों से अनुनय किया, लेकिन सैनिक नहीं माने ।तो बिश्नोई समाज की किसान महिला अमृतादेवी (इमरती देवी) के नेतृत्व में सैकडों लोग वृक्षों से चिपक गए और घोषणा की,
"सिर साठे रुख रहे तो भी सस्तो जान ।' "यानि किसी व्यक्ति की जान की कीमत पर भी एक पेड़ बचाया जाता है, तो वह सही है।"
इस प्रकार इमरती देवी के साथ उनकी तीन बेटिया आसू, रत्नी 'और भागूबाई व 363 लोगो ने बलिदान दिया । जिसमें 69 महिलाएं थी। अन्ततः राजा को जब यह पता चला तो उसने स्वयं आकर माफी मांगी और आपसी रंजिश न होने के कारण लोगों ने उन्हें क्षमा कर दिया।
यह बलिदान विश्व इतिहास की अनुपम घटना है। यह भाद्रपद शुक्ल दशमी या 5 सितम्बर को घटी थी।